बुधवार, 2 सितंबर 2015

हीरे का मोल

बहुत पुरानी बात है, एक बार एक राजमहल में काम करने वाली महिला का अबोध लड़का, राजमहल में खेल रहा था। खेलते-खेलते उसके हाथ में एक हीरा आ गया। वो लड़का, दौड़ता हुआ अपनी माँ के पास गया और उसने अपनी माँ को वो हीरा दिखाया। माँ ने देखा और समझ गयी कि ये हीरा है। मगर उसने बच्चे को बहलाते हुए कहा कि ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने उस हीरे को महल के बाहर फेंक दिया। थोड़ी देर बाद वो महिला राजमहल से बाहर निकली और बाहर से हीरा उठा कर बाजार चली गयी। बाजार में उसने उस हीरे को एक सुनार को दिखाया, सुनार ने भी यही कहा कि ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने भी हीरे को बाहर फेंक दिया। जब वो औरत वहाँ से चली गयी तो उसके जाने के बाद में उस सुनार ने वो हीरा उठाया और उसे जौहरी के पास ले कर गया और जौहरी को दिखाया।
जौहरी को देखते ही पता चल गया की ये एक नायाब हीरा है। उसकी नियत बिगड़ गयी और उसने भी सुनार को यही कहा कि ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने उस हीरे को उठा के बाहर फेंक दिया। इस बार बाहर गिरते ही वो हीरा टूट कर बिखर गया।
ऊपर देवलोक से नारदजी ये पूरा वाकया देख रहे थे। उन्होंने भगवान श्रीहरि से पूछा, जब हीरे को पहले दो बार फेंका गया तब वो नहीं टूटा परन्तु तीसरी बार जब जौहरी ने फेंका तो क्यों टूट गया?
भगवान् श्रीहरि ने जवाब दिया: "ना तो वो औरत उस हीरे की सही कीमत जानती थी और ना ही वो सुनार। हीरे की सही कीमत सिर्फ वो जौहरी ही जानता था और जब उस जौहरी ने जानते हुए भी हीरे की कीमत कांच की बना दी तो हीरे का दिल टूट गया और वो टूट कर बिखर गया!"
जब किसी इन्सान की सही कीमत जानते हुए भी लोग उसे नाकारा कहते हैं तो वो भी हीरे की तरह टूट जाता है।
जो भी आपके अपने हैं, उनकी सही कीमत का आकलन करना सीखें।

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